7 साल की बदकिस्मती वाली मान्यता कैसे शुरू हुई?
इस मान्यता की जड़ें भारत में नहीं बल्कि प्राचीन रोम में मिलती हैं। उस समय लोग मानते थे कि शीशा सिर्फ चेहरा नहीं दिखाता, बल्कि व्यक्ति की आत्मा का एक हिस्सा भी अपने अंदर समेट लेता है।अगर शीशा टूट जाए, तो उन्हें लगता था कि आत्मा भी टूट या घायल हो गई है।
साथ ही, रोमन लोग यह भी मानते थे कि जिंदगी का भाग्य-चक्र हर सात साल में पूरी तरह बदलता है। यानी सात साल में इंसान की किस्मत, स्वास्थ्य, ऊर्जा—सब नया हो जाता है।
इसी वजह से यह विचार बना कि-
- शीशा टूटेगा = आत्मा को नुकसान
- आत्मा को ठीक होने में लगेगे 7 साल
यहीं से “7 साल बदकिस्मती” वाला अंधविश्वास पूरी दुनिया में फैल गया।
शीशा टूटने से जुड़े दूसरे लोकप्रिय विश्वास
1. टूटे हुए शीशे में चेहरा देखने की मनाही
कई लोग मानते हैं कि टूटे शीशे में चेहरा देखना बेहद अशुभ होता है।
कहते हैं कि जैसे शीशा टूटकर बिखरता है, वैसे ही आपकी किस्मत, ऊर्जा और मानसिक शांति भी बिखर सकती है।
इसीलिए घर में कोई भी टूटा हुआ काँच या क्रैक वाला आईना तुरंत हटा देना चाहिए, ताकि नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
2. शीशा ऊर्जा को खींचता और रोककर रखता है
पुरानी मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि कांच या दर्पण ऊर्जा को आकर्षित करता है—चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक।
जब शीशा अचानक टूटता है तो माना जाता है कि:
- उसमें भरी नकारात्मक ऊर्जा घर में फैल जाती है
- इससे घर में तनाव बढ़ सकता है
- मनमुटाव, स्वास्थ्य समस्याएं या बार-बार होने वाली परेशानियाँ बढ़ सकती हैं
- इसलिए लोग सलाह देते हैं कि टूटे हुए शीशे को तुरंत घर से बाहर फेंक देना चाहिए।
3. कुछ मान्यताओं में टूटा हुआ शीशा शुभ भी माना जाता है
हालांकि ज्यादातर लोग इसे बुरा मानते हैं, लेकिन कुछ परंपराओं में शीशा टूटना शुभ संकेत भी माना जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, अगर घर का बड़ा शीशा बिना किसी वजह के टूट जाए,तो माना जाता है कि कोई बड़ा संकट घर पर आने वाला था। शीशे ने उस नकारात्मक ऊर्जा को सोखकर खुद टूटकर परिवार को बचा लिया।
ऐसे मामलों में कहा जाता है कि शीशा टूटना बुरा नहीं, बल्कि संकट टलने का संकेत है। टूटी हुई कांच की चीजों को शांत मन से तुरंत बाहर फेंक देना चाहिए।
