भगवान शिव के भक्तों के लिए शिव चालीसा (Shiv Chalisa) सिर्फ एक पाठ नहीं है, बल्कि आस्था, शक्ति और भरोसे का सहारा है। ये ना सिर्फ जीवन के दुख-दर्द को दूर करता है। साथ ही मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरता है। चाहे कोई मुसिबत हो या मन विचलित हो। शिव चालीसा का पाठ करने से एक अलौकिक शांति का एहसास होता है।
कर्पूरगौरं करुणावतांर,
संसारसारं भुजगेंद्रहारम्।।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे,
भवं भवानी सहिंत नमामि।।
तत्पश्चात् महादेव को पुष्प अर्पण कर शिव चालीसा का पाठ करें और पाठ के आखिरी में ऊँ नमः शिवाय मंत्री का जाप करें।
शिव चालीसा
ll दोहा ll
जय गणेश गिरजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान।।
ll चौपाई ll
जय गिरजापति दीनदयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाता।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के।।
अंग गौर सिग गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाये।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे।।
मैना मातु की हवै दुलारी।
वाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशुल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ।।
देवन जबहिं जाय पुकारा।
तबहिं दुख प्रभु आप निवारा।।
कियो उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायो।
लव निमेष महँ मारि गिरायो।।
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हारा विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन महँ तुम सम कोई नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद नाम महिमा तब गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।
प्रकटी उगधि मथन ते ज्वाला।
जरत सुरासुर भये बिहाला।।
कीन्ह दया तहँ करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नैन पूजन चहँ सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सबके घटवासी।।
दृष्ट सकल नित मोहि सतावैं।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौ।
यहि अवसर मोहि आनि उबारौ।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारहो।
संकट से मोहि आन उबारहो।।
मात पिता भ्राता सब कोई।
संकत में पूछत नहिं होई।।
स्वामी है एक आस तुम्हारी।
आप हरहु मम सकंट भारी।।
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई याचहिं सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशक।
मंगल कारन विघ्न विनाशक।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद सारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाये।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाये।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत हैं शम्भु सहाई।।
ऋनियां जो कोई तुम्हें पुकारी।
पाठ करत छूटे दुख भारी।।
करे पुत्र की इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पण्डित त्रयोदशी को लावै।
ध्यान पूर्वक होम करावै।।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै।
शंकर सन्मुख पाठ सुनावै।।
जन्म-जन्म के पाप नसावै।
अन्त वास शिवपुर में पावै।।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुख हरहु हमारी।।
ll दोहा ll
नित्य नेम कर प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।
मघसि छठ हेमंत ऋतु, संवत् चौंसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहिं, पूर्ण होय कल्यान।।
