Vishweshwara Vrat 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, भीष्म पंचक के तीसरे दिन विश्वेश्वर व्रत मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। भोलेनाथ के कई नामों में से एक नाम “विश्वेश्वर” भी है। इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं और उनकी कृपा पाने के लिए उपवास रखते हैं।
कर्नाटक के येलूर (Yeluru) में स्थित प्रसिद्ध महाथोबारा श्री विश्वेश्वर मंदिर में यह व्रत बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भक्त सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें सुख, समृद्धि और मानसिक शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विश्वेश्वर व्रत 2025: तिथि और समय
साल 2025 में विश्वेश्वर व्रत सोमवार, 3 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा।
यह पावन व्रत भीष्म पंचक के दौरान मणिकर्णिका स्नान से पहले किया जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
विश्वेश्वर व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में विश्वेश्वर व्रत का बहुत अधिक महत्व है। यह दिन भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन पूरे नियमों और श्रद्धा के साथ उपवास करता है, उसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कर्नाटक स्थित येलूर श्री विश्वेश्वर मंदिर को भगवान शिव के विश्वेश्वर रूप का निवास स्थान माना जाता है। यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर लिंग रूप में दर्शन दिए थे।
ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस व्रत के दिन रुद्राभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
विश्वेश्वर व्रत की पूजा-विधि
इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और भगवान शिव की पूजा के लिए संकल्प लेते हैं।
पूजन में निम्न वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है:
बिल्वपत्र (बेलपत्र)
फूल और मिठाई
नारियल या गंगाजल से अभिषेक
पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर)
पूजन के समय भक्त “महामृत्युंजय मंत्र” और “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हैं।
दिनभर उपवास रखने के बाद अगले दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन करवाकर व्रत का समापन किया जाता है।
विश्वेश्वर व्रत कथा
बहुत समय पहले कुथार वंश में एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम था राजा कुंडा। एक बार उन्होंने ऋषि भार्गव को अपने महल में आमंत्रित किया, लेकिन ऋषि ने आने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि आपके राज्य में कोई मंदिर या पवित्र नदी नहीं है जहाँ मैं भीष्म पंचक के तीसरे दिन भगवान शिव की पूजा कर सकूं।
यह सुनकर राजा कुंडा बहुत दुखी हुए। उन्होंने अपने राज्य को छोड़ दिया और गंगा नदी के तट पर जाकर भगवान शिव की उपासना शुरू कर दी। उन्होंने कई यज्ञ किए और कठोर तप किया।
उनकी भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान देने प्रकट हुए। राजा कुंडा ने भगवान से प्रार्थना की कि वे उनके राज्य में सदैव निवास करें।
भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके राज्य में रहने की सहमति दी। जब भगवान शिव वहां पहुंचे, तो वे एक कंद वृक्ष (Kanda tree) के पास रुके। उसी समय एक आदिवासी स्त्री अपने खोए हुए पुत्र को खोजते हुए वहां पहुंची। उसने गुस्से में उस पेड़ को तलवार से मारा, लेकिन तभी पेड़ से खून बहने लगा।
जब स्त्री ने ध्यान से देखा, तो उसे अहसास हुआ कि वह पेड़ नहीं बल्कि उसका पुत्र था। वह रोने लगी और अपने पुत्र का नाम “येलु, येलु” पुकारने लगी। तभी भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और लिंग रूप में वहां स्थापित हो गए।
आज भी कर्नाटक के येलूर श्री विश्वेश्वर मंदिर में वह शिवलिंग स्थापित है, जहां भगवान ने स्वयं प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए थे। इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष विश्वेश्वर व्रत मनाया जाता है।
विश्वेश्वर व्रत से मिलने वाले फल
भगवान शिव की कृपा से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मन में शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
नकारात्मकता और दुःख दूर होते हैं।
